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हमारा संविधान संप्रभु है। यह सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करता है। परंतु, विडंबना यह है कि बिहार का नागरिक कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता। नगालैंड में घर नहीं बना सकता और अब महाराष्ट्र में टैक्सी नहीं चला सकता? हां, कश्मीर में जमीन खरीदने और नगालैंड में घर बनाने के लिए यदि ऊंची पैरवी है तो सपना पूरा हो सकता है। यानी सारे नियम-कानून गरीब व मध्यम वर्ग के लिए? ऊंच वर्ग के लोगों के लिए नियम के ऊपर नियम। महाराष्ट्र सरकार ने बीस जनवरी 2010 को मनसे प्रमुख राज ठाकरे के नक्शे कदम पर चलते हुए यह जताने का प्रयास किया था कि वह मराठियों की हितैषी है। इसके लिए महाराष्ट्र के कैबिनेट ने टैक्सी के परमिट मामले में एक बड़ा फैसला किया। टैक्सी का परमिट उसे ही दिया जाएगा, जिसे मराठी पढऩे-लिखने और बोलने आएगा। इसके अलावा वह महाराष्ट्र में पन्द्रह सालों से रहता हो। इस फैसले से देश के सभी लोग स्तब्ध। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार है। इसके बावजूद केन्द्र सरकार की चुप्पी ने सबकुछ बयां कर दिया। कसूर किसका, केन्द्र या राज्य या फिर राजनीति स्वार्थ का। गए दिनों राज ठाकरे के लोगों ने बिहारी टैक्सी चालकों की खुलेआम पिटाई की थी। केन्द्र यह सब मूकदर्शक हो देखती रही थी। इसके बाद भी मनसे के तेरह विधायक जीत गए। इससे साबित हो रहा है कि हावी हो रहा क्षेत्रवाद। केन्द्र सरकार चाहकर भी इसपर अंकुश नहीं लगा पा रही है। वजह सरकार के कई पांव, एक भी बैठा तो औंधे मुंह गिरना तय। हालांकि जब देश भर में महाराष्ट्र सरकार के फैसले की छीछालेदर शुरू हुई तो अगले ही दिन मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण पलटते दिखे। कुछ भी हो, इस तरह की हरकतों से देश के संविधान पर अंगुली उठती है। विदेशी मुल्कों में भारत की शाख पर धब्बा लगता है? 2008 में 26 दिसंबर को जब पाक आतंकियों ने मुंबई घेर लिया था और दो सौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस वक्त राज ठाकरे और उनके लोगों ने मराठावाद का नारा क्यों नहीं दिया? भारतीय सुरक्षाकर्मी यदि उस वक्त मैदान में नहीं उतरे होते तो मुंबई को तीन दिनों में आतंकियों से छुटकारा नहीं मिलता। उस वक्त महाराष्ट्र की मदद करनेवाला न तो मराठी था और न ही मुंबई निवासी। मदद करनेवाला सुरक्षाकर्मी सिर्फ भारतीय और सिर्फ भारतीय थे। तब, क्यों नहीं राज ठाकरे आगे आए ? क्यों नहीं महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री आगे आए? तब सबको जान का खतरा था। कुछ राजनैतिक ताकतें क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रही हैं। महाराष्ट्र सरकार इस मामले में कुछ ज्यादा ही आगे है। महाराष्ट्र सरकार को इस बात का अहसास होना चाहिए कि महाराष्ट्र में देश के कोने-कोने के लोग रहते हैं, सभी की मिली-जुली मेहनत से आज का फला-फुला महाराष्ट्र है। क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाले लोगों के खिलाफ केन्द्र को कड़े कदम उठाने चाहिए। नहीं तो एक दिन आएगा, जब राजनीतिक स्वार्थ के चलते हर राज्य में क्षेत्रवाद का बीज पनपेगा। और, इसका असर देश के विकास पर पड़ेगा।
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