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पंथपाकड़ : सिर्फ एक जड़ से पचास पेड़

जरा हट के
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सुनने में कुछ अजीब लगेगा परंतु सच है कि बिहार के सीतामढ़ी स्थित पंथपाकड़ में सिर्फ एक जड़ से पचास से अधिक पेड़ हैं। ये पेड़ ढाई एकड़ में फैले हुए हैं। इनमें से कुछ सूख गए हैं तो कुछ नए का भी जन्म हो रहा है। ये पेड़ कितने पुराने हैं कहना मुश्किल है। सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर स्थित पंथपाकड़ वही जगह है, जहां जनकपुरधाम से अयोध्या जाने के क्रम में मां जानकी की डोली कुछ समय के लिए रुकी थी। इस जगह का नाम दो कारणों से पंथपाकड़ पड़ा। पहली किंवदंती- भगवान शिव ने लाखों साल पहले इसी पंथपाकड़ पेड़ के नीचे साठ हजार साल तक तपस्या की थी। दूसरी किंवदंती-वाल्मीकि रामायण के अनुसार, शिव के धनुष टूटने के पश्चात परशुराम जी का क्रोध धधकने लगा था। इसी बीच जनकपुरधाम से चली मां जानकी की डोली, इसी स्थल पर रुकी थी। तब, भगवान राम व परशुराम के बीच आमना-सामना हुआ। परशुराम फौरन ही भगवान राम के सामने नतमस्तक हो गए। दोनों के मिलने की जगह होने के कारण इस जगह का नाम पंथपाकड़ पड़ा। भारत में मां जानकी की हजारों प्रतिमाएं स्थापित हैं। परंतु पंथपाकड़ में मां जानकी की प्रतिमा की जगह मिट्टी के पिंड स्थापित हैं। ऐसा नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता। यहां के पाकड़ के पेड़ में मनुष्य के शरीर में रक्तसंचार के लिए बने नस की तरह ही छोटी-बड़ी लताएं हैं। लता के सहारे ही अलग-अलग पेड़ का जन्म होते रहता है। एक पेड़ सूखने के पहले ही दूसरा पेड़ उग जाता है। इस पेड़ को जीवित रखने के लिए पानी-खाद की जरूरत नहीं पड़ती है। इस स्थल पर पहुंचकर बड़े-बड़े साइंटिस्ट भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं। वैशाख के महीना में प्रत्येक साल हजारों की संख्या में संत विभिन्न राज्यों व पड़ोसी देश नेपाल से यहां आते हैं। वे सात से पन्द्रह दिनों तक यहां रुकते हैं। वे पेड़ की छांव के नीचे घंटों बैठकर मिट्टी के लेप को मस्तिष्क पर लगाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं। सीतामढ़ी जिले में शादी होने के बाद लड़के-लड़कियों की जोडिय़ां यहां मां जानकी के पिंड पर सिंदूर लगाकर आशीर्वाद लेती हैं। मंदिर के पुजारी रत्नेश्वर झा यहां की देखभाल करते हैं। इससे पूर्व उनके पिता, उनके दादा व अन्य इस स्थल की देखभाल किया करते थे। सारे पूर्वज अपने बच्चों को पंथपाकड़ के महत्व को कहानी के रूप में सुनाते रहे हैं। इस पवित्र जगह से तीन किलोमीटर मिट्टी के पथ पार करने के बाद ही पक्की सड़क आती है। ऐतिहासिक धरोहर होने के बावजूद पंथपाकड़ की ओर किसी नेता का ध्यान नहीं है। किसी भी चुनाव में इस स्थल को बचाने की दिशा में कोई चर्चा नहीं हुई।

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