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पेशे से नेतागिरी, दिल से साधु, विचार से संत; दूसरे के दुख से द्रवित होनेवाला सीतामढ़ी के मनोज कुमार को एक दशक बाद भी इंसाफ नहीं मिल सका है। उनकी आंखें इंसाफ के इंतजार में आज भी नम हैं और कह रही हैं कि कब मिलेगा न्याय। जवान से अधेड़ ये हो चुके हैं, अब लगता है कि बुढ़ापे में भी न्याय नहीं मिलेगा। ये उदास हैं, व्यवस्था को लेकर निराश भी। यह मामला 11 अगस्त 1998 का है। बिहार के पूर्व मंत्री रामनाथ ठाकुर, सीतामढ़ी के पूर्व विधायक नवल किशोर राय के साथ जदयू नेता मनोज कुमार सीतामढ़ी समाहरणालय में शांतिपूर्वक जुलूस इसके पश्चात सभा के लिए इक्ट्ठा हुए थे। वे बाढ़ पीडि़तों के लिए राहत की मांग कर रहे थे। सीतामढ़ी एक बाढग़्रस्त इलाका है। यहां के अधिकतर भू-भाग बाढ़ में डूब जाते हैं। जुलूस में काफी संख्या में बाढ़ पीडि़त भी जमा हुए थे। इसी क्रम में तत्कालीन एसपी परेश सक्सेना ने भीड़ में अपनी गाड़ी घुसा दी। भीड़ में से गाड़ी निकालने के लिए पुलिसकर्मियों ने लाठियां भी भांजीं। इससे प्रदर्शनकारी आक्रोशित हो गए। मनोज कुमार ने समझाया कि एसपी के खिलाफ वे शिकायत करेंगे। इसी बीच एक महिला को चोट लग गई। उसके सिर से खून बह रहा था। उसने चिल्लाते हुए कहा कि उसे पुलिसकर्मियों ने मारा है। हजारों की संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारी आक्रोशित हो गए। मनोज कुमार ने फिर समझाया। उनकी बात का असर यह हुआ कि हो-हल्ला कुछ कम हो गया। इसी बीच किसी शरारती तत्व ने समाहरणालय पर रोड़े फेंक दिए, जिससे एक-दो पुलिसकर्मी को हल्की चोटें आ गईं। समाहरणालय में मौजूद एक तथाकथित पत्रकार सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि एसपी साहेब भीड़ समाहरणालय में प्रवेश कर गई तो उससे निबटना कठिन होगा। इसपर वहां मौजूद डीएम ने उन्हें डांट दिया। तभी एक-दो और रोड़ा आकर गिरा। एसपी परेश सक्सेना भी आपे से बाहर हो गए थे। उन्होंने पुलिसकर्मियों को गोली चलाने का हुक्म दे दिया। देखते-देखते पुलिसकर्मियों ने गोली चलानी शुरू कर दी। इसमें पूर्व विधायक रामचरित्र राय, एक महिला सहित पांच लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हो गए। एसपी ने मनोज कुमार पर यह आरोप मढ़ा कि मनोज कुमार ने ही भीड़ को उकसाया है। विधायक नवल किशोर राय सहित कई नेता हालात को देखते हुए भांपते हुए भाग खड़े हुए। मनोज चूंकि निर्दोष थे, अत: इन्होंने भागना मुनासिब नहीं समझा। मनोज कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और थाने में न सिर्फ पिटाई की बल्कि उनकी दाढ़ी भी जबरन काट दी। इस सदमे को उनके पिता बर्दाश्त नहीं कर सके और असमय काल के गाल में समा गए। इधर, पिता को मुखाग्नि दिलाने की बात सुनकर पुलिस के होश उड़ गए क्योंकि श्री कुमार के चेहरे के घाव हरे थे, जिसे देख दंगा भड़क सकता था। पुलिस ने भीड़ से छिपाकर मनोज को पिता को अग्नि देने के लिए पेश किया। बाद में मनोज जमानत पर रिहा हो गण्। इसके पश्चात मनोज कुमार ने तत्कालीन डीएम रामनंदन प्रसाद, एसपी परेश सक्सेना सहित कई पुलिसकर्मियों पर अदालत में मामला दर्ज कराया। यह मामला आज भी अदालत में लटका है। तारीख पर तारीख मिलती रही। परंतु न्याय नहीं मिला। तत्कालीन डीएम तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वहीं, परेश सक्सेना और ऊंची कुर्सी पर तैनात हो चुके हैं। नवल किशोर राय बाद में विधायक से सांसद बन गए। परंतु, उन्होंने मनोज कुमार की मदद नहीं की। पूर्व सांसद ने श्री सक्सेना से कई बार बात की परंतु इस मुद्दे को गौण रखा। जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार नागेन्द सिंह मानते हैं कि परेश सक्सेना की हठधर्मिता ने बेगुनाह लोगों की जान ली। पुलिस ने सीतामढ़ी में दूसरा जलियांवाला कांड को जन्म दिया, यहां की जनता यही कहती है।
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