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एक गलती सौ अच्छाइयों पर भारी

जरा हट के
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आप किसी के लिए हमेशा अच्छा सोच रहे हैं, उसके हित में सबकुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। वह व्यक्ति मित्र हो सकता है, रिश्तेदार हो सकता है। लेकिन, आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि आपका एक ‘निगेटिव जवाब’ सारी अच्छाइयों को धो देता है। वही व्यक्ति आपके बारे में विपरीत सोचने लगता है, उसकी नजरों से आप गिर जाते हैं, फिर वही आपको दुश्मन समझने लगता है। ऐसा क्यों होता है, इस बात पर सबको गौर फरमाना चाहिए? फिर ‘ना’ सुनने की आदत को जीवन में उतारने की आदत भी डालनी चाहिए। हमेशा लाभ लेने वाले व्यक्ति को सोचना चाहिए कि 365 में 300 दिन उसे मदद मिली है। उसका नजदीकी आज क्यों इनकार कर रहा है? वह किसी संकट में तो नहीं है। कहीं आज उसे ही मदद की दरकार तो नहीं है। परंतु, ये दुनिया है-यहां एक गलती सौ अच्छाई पर भारी पड़ जाती है। आप आफिस जाते हैं-कभी कम तो कभी अधिक काम करते हैं। बॉस के नजर में आप काम करने वाले व्यक्ति हैं। आप पर विश्वास भी किया जाता है। किसी कारण वश यदि आपसे एक गलती हो गई- बोलने में, लिखने में या फिर समय पर पूरा न करने में। फिर क्या, बॉस का मूड ठीक रहा तो ठीक है वर्ना कहा जाएगा कि आप एक समस्या हैं। यदि भूलवश आपने यह कह दिया कि इससे पहले आपसे कहीं भी चूक नहीं हुई है तो बॉस और भड़क जाएंगे। संभव हो कि आपका टेबल ही बदल जाए, आपको कोई पेंडिंग काम थमा दिया जाए। अब जरा इसपर भी विचार कीजिए कि इसी बॉस के कहने पर आपने प्रतिदिन ड्यूटी से घंटा-दो घंटा अधिक काम किया। एक गलती क्या हुई कि सारा किया धरा मिट्टी में मिल गई। आप इससे कितने मर्माहत होंगे, कितने दु:खी होंगे। इसका अंदाजा उस बॉस को नहीं होता, क्योंकि फिलवक्त वह बॉस की कुर्सी पर हैं। कहने का अर्थ यह है कि एक गलती कई अच्छाइयों को दबा देती है। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। मदद करने के पहले यह आकलन भी जरूरी है कि वास्तव में अमुक व्यक्ति को मदद की आवश्यक्ता हैं या नहीं। कलयुगी दौर में व्यक्ति फल कि चिंता पहले करता है, कर्म बाद में। ऐसे में अच्छा करने पर भी यदि कोई बुरा सोचता है तो वह किसी गुनहगार से कम नहीं है। बार-बार अच्छा करनेवाले व्यक्ति से यदि कभी भूल हो जाए तो उसे माफ कर देना चाहिए। साथ ही यह भी पता लगाना चाहिए कि उससे यह चूक कैसे हुई? न कि उससे नफरत भरी नजरों से देखना चाहिए। माह में उनतीस दिन यदि कोई व्यक्ति सही निर्णय लेता है तो एक दिन उससे भी भूल हो सकती है। इस बात को सदैव याद रखने की जरूरत है। ऐसा न करनेवालों के आसपास कभी भी हितैषी खड़े नजर नहीं आएंगे। इनके इर्द-गिर्द सिर्फ चाटुकार ही मंडराते दिखेंगे।

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