Menu
blogid : 212 postid : 88

हां, नहीं है इनका विकल्प

जरा हट के
जरा हट के
  • 59 Posts
  • 616 Comments

हर जगह (घर में, चौक पर, दफ्तर में) एक स्वर सुनाई देना आम बात है कि फलां बिना काम नहीं रुकेगा। यह भी कहा जाता है कि फलां आज दफ्तर नहीं आया कोई बात नहीं, उसका विकल्प है न? वास्तव में विकल्प अपने नाम के समान ही निरीह होता है? अपवाद को छोड़ अधिकतर विकल्प कामचलाऊ ही होते हैं। एक नहीं अनगिनत ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनका कोई विकल्प नहीं होता है? महात्मा गांधी का विकल्प कौन हुआ? खैर ये तो महान व्यक्ति थे। घर का अभिभावक का विकल्प क्या कोई हो सकता है? क्या पिता के गुजरने के बाद मां विकल्प हो पाती हैं? ऑफिस में मेन बॉस के नहीं रहने पर क्या उनका विकल्प वैसा ही प्रभावी हो पाते हैं? सबका जवाब नहीं में ही होगा। वास्तव में जितनी आसानी से हम यह कह देते हैं कि विकल्प है न इसका जवाब उतना ही कठिन होता है।

प्रसंग एक : बात कुछ समय पहले की है-एक कार्यालय के पदाधिकारी ने नाराज होकर अपने तीन कर्मचारियों से कहा कि अन्यत्र नौकरी ढूंढ़ लें। तीनों अवाक-हैरान-परेशान। समय ने उनका साथ दिया और तीनों को दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल गई। पदाधिकारी को उनके जाने के बाद अहसास हुआ कि उनसे गलती हुई है, क्योंकि इस बीच उन्होंने बहाली के लिए कई को बुलाया। साक्षात्कार लिया, काम का मौका दिया परंतु सभी अंत में धुआं-धुआं। आज तक तीनों का विकल्प नहीं मिला। पदाधिकारी तो पदाधिकारी हैं-जो जी में आया कह दिये।

प्रसंग दो : एक दफ्तर में कार्यरत एक सीनियर पत्रकार हैं श्री कौशल शुक्ला। इनका कोई जवाब ही नहीं। इनके विकल्प दो मिलकर भी नहीं बन पाते, यह दीगर सत्य है। वजह साफ-चालीस के बाद भी बीस वाली फुर्ती, बच्चों की तरह जानने की ललक। भला कौन कर सकता इनका मुकाबला? हर चीज का जवाब भी इनके पास फटाफट। जहां लोग सोचना बंद करते, ये वहां से शुरू करते हैं। ऐसे व्यक्ति का क्या है विकल्प? हां, नहीं है-इनका कोई विकल्प?

प्रसंग तीन : एक बड़े अखबार के एक संपादक (सुकांत जी), जो अब रिटायर कर चुके हैं। इनकी कलम का कोई जवाब नहीं था, जिसपर हाथ रखते थे, वो कलम का जादूगर बन जाता था, जिसके बारे में भविष्यवाणी करते थे कि अमुक पत्रकार जल्द आगे बढ़ेगा। आज इनकी हर बात सही हो रही है। बुढ़ापे में भी वे अठारह घंटे मेहनत करते थे। हर शब्द पर इनकी पकड़ थी। क्या ऐसे व्यक्ति का कोई विकल्प हो सकता है, जवाब होगा कदापि नहीं।

प्रसंग चार : कोई व्यक्ति काम को पूजा की तरह करता है। कोई व्यक्ति घड़ी देख-देख कर काम का घंटा पूरा करता है। कोई व्यक्ति बॉस को दिखाने के लिए चिल्ला-चिल्लाकर काम करने के लिए जूनियर को कहता है तो कोई बिना बिना बोले काम करता है। कोई गलती करने पर अफसोस करता है तो कोई गलती बताने पर आंखें तरेरता है। ऐसे में कोई किसी का विकल्प कैसे? हां, यह भी सत्य है कि इसके अपवाद भी होते हैं। कभी-कभी विकल्प ही भारी होता है और नाम दूसरे का होता है। पर, ऐसे उदाहरण ढूंढऩे से भी जल्दी नहीं मिलते।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh