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अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार का मुद्दा क्या उठाया। छुटवैये नेताओं के पर निकल आए। विपक्ष को बड़ा चुनावी मुद्दा मिल गया। मीडिया को प्रोडक्ट बेचने के लिए मसाला। अफसरों ने भी मिलायी हां में हां। ऐसा लगा कि पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हो गया है। ऐसे लोगों ने भी आवाजें बुलंद की, जिनपर भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले चल रहे थे। गौर करने वाली बात है कि एसी रूम में बैठकर ‘सोने की आंख’ से देखकर जनता के सामने जो आंकड़े पेश किए गए, वे सच्चाई से कोसों दूर हैं। इस बात को सोचना होगा, समझना होगा? उन्हें भी जो भ्रष्ट हैं, उन्हें भी जो भ्रष्टों को बढ़ावा दे रहे हैं और उन्हें भी जो उन्हें बचा रहे हैं? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा जलाया गया दीया आगे मशाल बनेगी या बुझ जाएगी, यह सवाल सबके मन में है, जवाब भी हरेक के पास है, यह अलग बात है कि सच को झुठलाना चाहते हैं? बेशक ! भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए हर घर में एक अन्ना हजारे को जन्म लेना होगा। क्योंकि भ्रष्टाचार की जद में जाएं तो कुछ पैसों के लिए लिए चाय की दुकान से मल्टीप्लेक्स, चपरासी से अधिकारी तक कहीं न कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। भ्रष्टाचार से नाता न रखने वालों की संख्या भी काफी है। मगर, ये बढ़ावा देने में कहीं न कहीं जरूर शामिल हैं। क्या सिनेमा देखने के लिए हम ब्लैक टिकट नहीं खरीदते, क्या बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर बनाने के लिए घूस देने के लिए तैयार नहीं रहते। वास्तव में भारत में भ्रष्टाचार हर व्यक्ति के दिल व दिमाग में किसी न किसी रूप में अपना घर बना चुका है, जिसे तोडऩे के लिए लगातार कोशिश करनी होगी। बताते चलें कि यदि वेतन के पैसों से कोई आईएएस भी शहर में एक मकान बनाना चाहे तो बीस साल पैसे जोडऩे होंगे। फिर पांच साल में ही कोई आईएएस करोड़ों का मकान कैसे खरीद लेता है? विधायक बनने के पूर्व पैदल चलने वाले कई नेता, एमएलए बनते ही चार चक्के की गाड़ी पर घूमने लगते? थाने का मामूली दारोगा का बेटा देहरादून कैसे पढ़ता है, जबकि उसके वेतन के बराबर वहां फीस देनी पड़ती है? चिकित्सक पांच साल में ही करोड़पति कैसे बन जाते? मंत्री बनते ही नेताओं के पास एकाएक पैसे कहां से बरसने लगते ? चुनाव में करोड़ों खर्च करने वाले नेता शपथ पत्र में खुद को कंगाल दिखाते, फिर पैसे कहां से आते ? क्या बिना घूस दिए पासपोर्ट बनवाया जा सकता है? क्या बिना रुपये दिए ड्राइविंग लाइसेंस बन जाते हैं? बिना पैसे कितने दिनों में और देकर कितने दिनों में? क्या रेलवे का कोई ऐसा टीटीई होता है, जिसकी आमदनी लाख में नहीं होती? ट्रेन में बर्थ रहते टीटीई कहता है सीट नहीं है? देखा जाए तो ऊपर से नीचे तक के लोग भ्रष्टाचार में इस कदर समा चुके हैं कि इनसे निपटना आसान नहीं है। आपको पता है कि निगरानी के अफसर भी घूस लेते हैं? भ्रष्टाचार की जांच को बने अफसरों की संपत्ति की जांच की जाए, तो इक्के-दुक्के छोड़कर सभी करोड़पति हैं। नीचे वाला क्लर्क मंथन करते वक्त यही सोचता है कि उसके साहेब भी तो घूस ले रहे हैं। सो, थोड़ा लेने में बुराई नहीं। ऐसे में किसके पास की जाए शिकायत, कौन सुनेगा और कुछ करेगा। सिर्फ डर से भ्रष्टाचार का खात्मा असंभव है। इसके लिए आत्मा को टटोलना होगा। क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाएंगे-इसे भाव को जगाना होगा। शपथ लेना होगा कि थोड़े से फायदे के लिए हम घूस नहीं देंगे। अन्ना के सुर में सुर मिलाना होगा-ये अन्ना तुम चिराग लेकर चलो, हम पीछे हैं। बापू तुम भी देखो, हम बदल रहे हैं।
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