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बेटियां नहीं रहेंगी तो कैसे चलेगा समाज…

जरा हट के
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दुष्कर्म पर देशव्यापी बहस छिड़ी हुई है। अलग-अलग ढंग से इसकी व्याख्या हो रही है। सरकार ने कानून कड़े कर दिए हैं। क्या इसके बाद भी दुष्कर्म रुका? आंकड़े बताते हैं कि इसकी संख्या बढ़ी। पहले घटना को अंजाम दिया जाता था। अब दुष्कर्म के बाद हत्या हो रही है। ऐसे में क्या कोई बेटी का बाप बनना चाहेगा? और यदि बेटियां नहीं रहेंगी तो समाज का क्या होगा? क्या पुरुष इतना बलशाली है जो समाज को अकेले चला लेगा? क्या यह बड़ी समस्या नहीं है? क्या इसके लिए सिर्फ सरकार दोषी है? क्या‍ इसके लिए समाज दोषी नहीं है? क्या फांसी दे देने से इस समस्या का निदान हो जाएगा? आतंकी अजमल कसाब को फांसी दे दी गई। क्या‍ इसे देखकर आतंकियों ने अपराध छोड़ दिया। यदि इन घटनाओं से सीख मिलती तो जेल में कैदियों की संख्या दिनोंदिन नहीं बढ़ती। यदि ऐसा रहता तो पूरे संसार में सिर्फ अमन-चैन रहता। हम कभी-कभार ‘राक्षस’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। हर आदमी में कई ‘राक्षस’ हैं। आदमी में ‘राम’ भी बसते हैं। जब ‘राक्षस’ हावी होता है तो व्यक्ति उस राह पर चल पड़ता है, जो गलत है। जो पाप की ओर ढकेलता है, पाप का भागीदार बनाता है। जिससे जीवन नरक हो जाता है। पूरा परिवार उस ताप से झुलसता है। कुछ साल पीछे जाएं तो धार्मिक फिल्में बनती थीं। पाप-पुण्य की बात होती थी। स्कूलों में नैतिक शास्त्र की पढ़ाई होती थी। माता घर संभालती थीं और पिता दफ्तर। माताएं लोरी गाकर बच्चों को सुलाती थीं। अब न लोरी है, न माता के पास समय। क्योंकि, माताएं आधुनिक हो चुकी हैं। यह चिंतनीय है। इंटरनेट क्या आया? संसार एक कमरा बन गया। मगर, अपने साथ ऐसी चीजें लाया, जिसपर शुरुआती दौर में ही प्रतिबंध लगना चाहिए था। मगर पैसे कमाने की होड़ में जगह-जगह साइबर कैफे खुल गए। यहां बच्चों को ‘वो सब’ देखने को मिला, जो नहीं मिलना चाहिए था। कुछ तो संभल गए, कुछ विकृति को पाले रखे। नतीजा कुकृत्य …। इसकी जड़ में जाएं तो पता चलेगा कि इसकी सबसे बड़ी वजह अशिक्षा है। सरकार चाहे लाख दावे क्यों न कर ले, लेकिन सच्चाई यही है कि शिक्षा का स्तर अभी भी निम्न है। यदि ऐसा नहीं रहता तो मैट्रिक की परीक्षा कड़ाई से होती। कई राज्यों में जब मैट्रिक की परीक्षा होती है तो अभिभावक चोरी कराने पहुंचते हैं। फिर नंबर बढ़ाने की कवायद शुरू होती है। ऐसी पढ़ाई किस काम? ऐसे बच्चे आगे चलकर चाहे ‘नेता’ बने या फिर कुछ और, क्या? करेंगे…। पहले गुरुकुल हुआ करता था। बच्चे गलती करते थे तो शिक्षकों को पीटने का हक था। अब शिक्षक ही डरे-डरे से रहते हैं। कोई अभिभावक थाने में केस न कर दे। कॉलेज में पढ़ाई कम, धरना-प्रदर्शन ज्यादा। जी हां, सही शिक्षा लाना होगा। अभिभावकों को चेतना होगा। बेटियों के लिए कराटे शिक्षा अनिवार्य करना होगा। अभिभावकों को भी बेटियों का खास ख्याल रखना होगा। माहौल के अनुसार, उन्हें कपड़े पहनने की इजाजत मिलनी चाहिए। बेटी यदि बाहर जाती है तो उसपर नजर रखनी चाहिए। मगर, अफसोस इस बात का भी है कि कुछ अभिभावक बेटियों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि वे किसी अच्छे लड़के से दोस्ती करे। उसे पटाए ताकि शादी हो जाए। दहेज न देना पड़े। ये नुस्खे खतरनाक हैं। क्योंकि, बाद जब हद से गुजर जाती है तो लड़का शादी से इन्कार कर देता है। बात अदालत तक पहुंचती है, ऐसे में शादी तो हो जाती है, पर जीवन सुखमय नहीं रहता। सरकार को भी दुष्कर्म के दोषियों को माहभर के अंदर कड़ी सजा दे देनी चाहिए। ताकि औरों के लिए यह सबक बने। दुष्कर्म रोकने के लिए सरकार को ही नहीं, हर व्यक्ति को चेतना होगा। क्यों कि, दुष्क र्म की शिकार किसी की बेटी है, किसी की बहन तो किसी की भतीजी। बुरी नजर रखने वाले को सोचना होगा कि वे भी किसी के भाई, किसी के पिता हैं। कहीं पीड़िता की ‘आह’ उनके बच्चों को भी न बर्बाद…।

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