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लाशों का ढेर @ पॉलिटिक्स

जरा हट के
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उत्तराखंड के आपदा में हजारों लाशें अब भी दबी हैं। हालांकि संख्या का ठीक-ठीक अनुमान मुश्किल है। ऐसे लोग भी हैं, जो कई दिनों से भूखे-प्या‍से हैं। खाना-पानी न मिलने की वजह से ये शिथिल हो चुके हैं। इन्हें तुरंत राहत की जरूरत है। राहत पहुंचाई भी जा रही है। मगर, गति धीमी है। सेना के जवानों की संख्या और बढ़ाई जानी चाहिए। हेलीकॉप्टरों की संख्या भी पीड़ितों की तुलना में काफी कम हैं। इन पीड़ितों को देखकर आम आदमी की आंखें भरी हुई हैं। लेकिन, एक वर्ग ऐसा भी है, जो लाशों के ढेर पर भी पॉलिटिक्स कर रहा है। इस वर्ग को यह चिंता नहीं कि उत्तराखंड भारत का ही एक हिस्सा है। एक ऐसा सुंदर धरोहर, जहां पहुंचकर लोग सुकून की सांस लेते हैं। गंगोत्री की कलकल धारा को देख सारी पीड़ा भूल जाते हैं। इस धरोहर को फिर से कैसे संजोये? इस बात की चिंता भी नहीं है कि आगे यदि मानसून कहर बरपाता है तो लोगों की सुरक्षा कैसे की जाएगी? यह भी कड़वा सच है कि आपदा प्रबंधन विभाग सिर्फ नाम का है। कई राज्यों में तो विभाग का दफ्तर तक समय पर नहीं खुलता। मशीनें, नावें सबकुछ जीर्ण-शीर्ण हाल में हैं। मानसून की धमक पर तैयारी शुरू होती है। यानी वो विभाग, जिसे कुदरत के कहर से लड़ना है, सबसे निरीह है। मौसम विभाग को ही लें तो उसका भविष्यवाणी अधिकतर ‘फेल’ ही होता है। लाखों लोग भ्रष्टाचार में इस कदर लिप्त‍ हो चुके हैं कि उन्हें समाज के दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है। कोई दिन ऐसा नहीं है कि कालाधन के कई करोड़ रुपये जब्त नहीं होते हैं। मगर उत्तराखंड के लिए सबकी झोली खाली चुकी है। कुछ राज्यों ने मदद देने की बात कही है। कई राज्य अभी सोच रहे हैं। देश के बड़े पॉलिटिशियन इस बात पर विचार-विमर्श कर रहे हैं कि किस मौके पर मदद की घोषणा करें? सामान्य स्थिति में ऐलान करने पर संभव है कि इम्पैक्ट कम पड़े। संभव है कि वोट बैंक में भी कोई खास फायदा न हो। इन सब से इतर एक ऐसा वर्ग भी है जो मुर्दें की तरह पड़ीं महिलाओं के शरीर को नोचने की फिराक में है। उसकी नजर बटुए पर भी है। भला हो सेना के जवानों का जो जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। इस पुनीत काम के दौरान ही कई जवान लापता हो गए हैं। इतना सबकुछ होने के बाद भी इस संकट को अब तक राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया गया है। यह भी आसान नहीं, क्योंकि घोषणा के पूर्व हर पक्ष को टटोला जाएगा। वोट बैंक को बढ़ाने पर भी गंभीरता से विचार होगा, शायद तब…। यह अलग बात है कि तब तक तबाही थोड़ी और बढ़ जाएगी। कई और जानें काल के गाल में समा जाएंगी। बताते चलें कि मानसून यदि ठीक से सक्रिय हुआ तो कई और राज्यों में भीषण तबाही तय है। बहरहाल सबका ध्यान उत्तराखंड पर है। इस भयावह स्थिति को देखकर कम से कम आपदा विभाग को तो चेत ही जाना चाहिए। नेताओं को भी कम से कम ऐसे मौके पर राजनीति की बातें नहीं करनी चाहिए। इस मौके पर तो सिर्फ मानवता दिखनी चाहिए। देश के लोगों को भी एकजुट होकर उत्तराखंड की मदद करनी चाहिए।

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