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इन नेताओं को चाहिए मुद्दा

जरा हट के
जरा हट के
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इन नेताओं को चाहिए मुद्दा, विषय चाहे पॉजिटिव हो या निगेटिव। कहीं कोई बड़ी घटना घट जाए तो बयान देने व आलोचना करने में ये पीछे नहीं हटते। यदि विपक्ष के नेता हैं तो हर गड़बड़ी के लिए सत्ता पक्ष जिम्मेवार है। सत्ता के हैं तो विपक्ष पर आरोप-प्रत्यारोप। विपक्ष के नेताओं को लगता है कि सिर्फ विकास की बात से जनता वोट नहीं देगी। इसलिए कुछ अलग करना है, कुछ अलग सोचना है। कई बार तो ये ऐसा बयान दे देते हैं, जिसकी आलोचना जनता ही शुरू कर देती है। ऐसे में सारा दोष मीडियाकर्मी पर मढ़ देते हैं। यदि गोलीबारी में कोई छात्र नेता घायल हो जाता है और संजोग से नेता जी अस्पताल पहुंचते हैं तो इनकी नजरें मीडियाकर्मी को ढूंढने लगती हैं, जबतक ये फोटो जर्नलिस्‍ट को देख न लें, इन्‍हें चैन नहीं। क्‍योंकि, बिना खबर कवरेज के लोग जानेंगे कैसे कि नेताजी आए थे। लोग कहेंगे कैसे कि नेताजी संवेदनशील हैं, हर दुख-सुख में लोगों के साथ खड़े हो जाते हैं। तय मानिए यदि मीडिया दो से तीन बार इनके ‘घायल प्रेम’ के कवरेज को स्थान न दे तो ये अस्पताल की ओर ये कभी झांकेंगे ही नहीं। यदि घटना-दुर्घटना न हो तो ये ‘बेरोजगार’ हो जाते हैं। तब ये अखबार में, टेलीविजन पर विरोधी नेताओं के बयान को गंभीरता से पढ़ते हैं, सुनते हैं। मंथन के बाद प्‍लानिंग, फिर शाम तक प्रेस विज्ञप्‍ति जारी कर एलान, यह फैसला सूबे या देश हित में नहीं है। विपक्ष आलोचना करता है। इनकी राह पर इनसे जुड़े अन्‍य नेता भी चल पड़ते हैं। फिर जिला व प्रखंड स्‍तर के नेता पीछे क्यों रहें? नेताजी को लगता है कि जनाधार मिलने लगा, मीडिया में कवरेज भी ठीक से होने लगा, फिर क्या धरना-प्रदर्शन का निर्णय ले लिया या फिर सूबे बंद का। कम से कम सात दिन इंगेज रहने के लिए ठीक-ठाक विषय तो मिल ही गया। इसी तरह एक के बाद एक विषय का चयन करते-करते साढ़े चार साल बीत जाता है, फिर चुनाव की घोषणा। तदोपरांत वोट की राजनीति, गिनती गिनाने का समय हमने अमूक घायल को अस्पताल में जाकर देखा। बेहतर चिकित्सा की व्‍यवस्‍था कराई। जनता के लिए धरना-प्रदर्शन किया। नेताजी जरा बताएं कि क्या जनता ने आपको कहा था कि आप विकास के बदले धरने पर बैठें? आपको तो बड़ी उम्मीद से जनता ने कुर्सी पर बिठाया था, आपको तो योजना बनानी चाहिए थी कि पिछड़ा क्षेत्र विकसित कैसे होगा? इसके लिए लड़ाई लड़नी चाहिए थी। छात्र यदि बेवजह हंगामा कर रहे हैं तो उन्‍हें समझाना चाहिए था। किसी बात पर नाराज भीड़ यदि हंगामा कर रही तो उसे इंसाफ दिलाना चाहिए था। लेकिन यदि आप ऐसा करेंगे तो मुद्दा ही खत्म हो जाएगा। मुद्दा खत्म हो जाएगा तो आप बेरोजगार हो जाएंगे।

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