कहानी एक इंजीनियरिंग कॉलेज की
कहानी एक इंजीनियर कॉलेज की
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यह कहानी बिहार के एक ऐसे इंजीनियर कॉलेज की है, जहां पढ़ाई कम और विवाद व हंगामा ज्यादा होता है। साल में कम से कम आधा दर्जन बार बड़ा बवाल होना तय है, जिसमें छात्र कक्षा छोड़ सड़क पर उतरते हैं/प्रदर्शन करते हैं। वजह एक नहीं अनेक हैं। क्या होने वाले भावी इंजीनियरों की ऐसी हरकत शोभनीय है? जाहिर है कि इसका उत्तर हर कोई ना में ही देगा। शिक्षक भी ना कहेंगे, अभिभावक व यहां तक कि छात्र भी गलत कहेंगे। फिर ऐसा हो क्यों रहा है? देश के अन्य इंजीनियङ्क्षरग कॉलेजों में तो ऐसा नहीं होता, फिर यहां हंगामा व विवाद क्यों? मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) में हॉस्टल के अंदर छात्रों के अलग-अलग ग्रुप बने हुए हैं, जहां जाति-धर्म व गरीबी-अमीरी का फर्क साफ नजर आता है। कई सालों से विद्या के मंदिर में यह ‘खेलÓ चल रहा है, लेकिन रोकने-टोकने वाला कोई नहीं। जिस उम्र में बच्चे इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज में एडमिशन लेते हैं, उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं होती। ये कॉलेज में जो देखते हैं, उसे ही सीखते हैं। इनका आचार-व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है। मगर, इन्हें भटकाव से रोकने, सही शिक्षा देने की जिम्मेवारी शिक्षकों की होती है, क्योंकि बच्चों के माता-पिता उनसे दूर हैं, वे नहीं देख रहे कि लाडले क्या कर रहे हैं। वे तो बच्चों को ऊंचाई पर देखना चाहते हैं। यह माना जा सकता है कि कुछ बच्चे भटक जाते हैं, मगर सभी तो ऐसे नहीं हैं। शिक्षकों को चाहिए कि समय-समय पर बच्चों की काउंसिलिंग करें। उनकी गतिविधियों पर नजर रखें, उनकी सही मांगों को मानें। बच्चों की मानसिकता को भी समझें, तदोपरांत उन्हें सही दिशा दें। बच्चों को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि उनके माता-पिता ने इस उम्मीद से भेजा है कि वे बेहतर करें। ऐसे में उनका भी कर्तव्य है कि वे अभिभावकों के सपनों को साकार करें। छोटी-छोटी बातों पर उलझाव क्यों, विवाद क्यों? बातचीत के जरिए भी हर समस्या का निदान निकाला जा सकता है। एमआइटी में बार-बार विवाद से छात्रों की छवि खराब होती है। शिक्षकों पर भी सवाल उठता है? इलाके के लोग अभिभावकों पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। विवाद की बात जब खबर बनती है तो दूसरे राज्यों के लोग तरह-तरह की टिप्पणियां करते हैं। यह कहने में भी परहेज नहीं करते कि बिहार में ऐसा ही होता है। हम यह मौका क्यों दें? विवाद की जगह शांति व्यवस्था क्यों नहीं? भेदभाव की जगह एक भाव क्यों नहीं? ऐसा करना कोई मुश्किल नहीं, लेकिन इसके लिए आत्ममंथन की जरूरत है। शिक्षकों को भी, छात्रों को भी…। तभी, नई सुबह आएगी, सुहानी सुबह आएगी…।
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यह कहानी बिहार के एक ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज की है, जहां पढ़ाई कम और विवाद व हंगामा ज्यादा होता है। साल में कम से कम आधा दर्जन बार बड़ा बवाल होना तय है, जिसमें छात्र कक्षा छोड़ सड़क पर उतरते हैं/प्रदर्शन करते हैं। वजह एक नहीं अनेक हैं। क्या होने वाले भावी इंजीनियरों की ऐसी हरकत शोभनीय है? जाहिर है कि इसका उत्तर हर कोई ना में ही देगा। शिक्षक भी ना कहेंगे, अभिभावक व यहां तक कि छात्र भी गलत कहेंगे। फिर ऐसा हो क्यों रहा है? देश के अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में तो ऐसा नहीं होता, फिर यहां हंगामा व विवाद क्यों? मुजफ्फरपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) में हॉस्टल के अंदर छात्रों के अलग-अलग ग्रुप बने हुए हैं, जहां जाति-धर्म व गरीबी-अमीरी का फर्क साफ नजर आता है। कई सालों से विद्या के मंदिर में यह ‘खेल’ चल रहा है, लेकिन रोकने-टोकने वाला कोई नहीं। जिस उम्र में बच्चे इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेते हैं, उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं होती। ये कॉलेज में जो देखते हैं, उसे ही सीखते हैं। इनका आचार-व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है। मगर, इन्हें भटकाव से रोकने, सही शिक्षा देने की जिम्मेवारी शिक्षकों की होती है, क्योंकि बच्चों के माता-पिता उनसे दूर हैं, वे नहीं देख रहे कि लाडले क्या कर रहे हैं। वे तो बच्चों को ऊंचाई पर देखना चाहते हैं। यह माना जा सकता है कि कुछ बच्चे भटक जाते हैं, मगर सभी तो ऐसे नहीं हैं। शिक्षकों को चाहिए कि समय-समय पर बच्चों की काउंसिलिंग करें। उनकी गतिविधियों पर नजर रखें, उनकी सही मांगों को मानें। बच्चों की मानसिकता को भी समझें, तदोपरांत उन्हें सही दिशा दें। बच्चों को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि उनके माता-पिता ने इस उम्मीद से भेजा है कि वे बेहतर करें। ऐसे में उनका भी कर्तव्य है कि वे अभिभावकों के सपनों को साकार करें। छोटी-छोटी बातों पर उलझाव क्यों, विवाद क्यों? बातचीत के जरिए भी हर समस्या का निदान निकाला जा सकता है। एमआइटी में बार-बार विवाद से छात्रों की छवि खराब होती है। शिक्षकों पर भी सवाल उठता है? इलाके के लोग अभिभावकों पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। विवाद की बात जब खबर बनती है तो दूसरे राज्यों के लोग तरह-तरह की टिप्पणियां करते हैं। यह कहने में भी परहेज नहीं करते कि बिहार में ऐसा ही होता है। हम यह मौका क्यों दें? विवाद की जगह शांति व्यवस्था क्यों नहीं? भेदभाव की जगह एक भाव क्यों नहीं? ऐसा करना कोई मुश्किल नहीं, लेकिन इसके लिए आत्ममंथन की जरूरत है। शिक्षकों को भी, छात्रों को भी…। तभी, नई सुबह आएगी, सुहानी सुबह आएगी…।
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